सावन से सजे उत्तराखंड में नववर्ष(हरेला )का आध्यात्मिक आगाज़

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उत्तराखंड में जब पहाड़ों पर घटाएं उमड़ने लगती हैं, नदियों का जल प्रवाह तेज हो जाता है, और वन प्रान्तर हरियाली की चादर ओढ़ लेते हैं, तो यह संकेत होता है कि सावन का पवित्र महीना दस्तक दे चुका है। इस वर्ष आज 16 जुलाई से सावन का शुभारंभ हुआ है और यह संयोग ही है कि इस आध्यात्मिक ऋतु का आरंभ ठीक उसी समय हो रहा है जब उत्तराखंडवासी नए संवत्सर, नववर्ष या श्रावणी समयचक्र में प्रवेश कर रहे हैं। यह संयोग प्रकृति और अध्यात्म के मध्य एक दुर्लभ समरसता का प्रतीक बन गया है।संवाददाता,हिंदुस्तान ग्लोबल टाइम्स/ दिनेश बम/उत्तराखंड श्रमजीवी पत्रकार संघ रुद्रपुर ऊधमसिंह नगर उत्तराखण्ड।

रुद्रपुर। हरेला पर्व के पावन अवसर पर शैल सांस्कृतिक समिति द्वारा शैल भवन परिसर में भव्य वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में समिति के सभी सदस्य, पदाधिकारी और शहर के पर्वतीय समुदाय के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

शैल परिषद हमेशा उत्तराखंड की पर्वतीय संस्कृति, परंपरा और धरोहर को संरक्षित करने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाती आ रही है। इसी क्रम में आज हरेला पर्व के उपलक्ष्य में रुद्रपुर ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड को हरियाली और पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए विभिन्न प्रजातियों के पौधे रोपे गए।

इस अवसर पर समिति के सदस्यों ने एक-दूसरे को हरेला पर्व की शुभकामनाएं दीं और पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करते हुए घरों में विशेष पकवान बनाए। कार्यक्रम में हरेला सर पर रखकर आशीर्वाद लिया गया और सुख-समृद्धि की कामना की गई।

 

शैल सांस्कृतिक समिति के संरक्षक श्री चंद्र बल्लभ घिल्डियाल अध्यक्ष गोपाल सिंह पटवाल ,महामंत्री एडवोकेट दिवाकर पांडे, उपाध्यक्ष सतीश ध्यानी , कोषाध्यक्ष दया किशन दनाई, राजेंद्र बोहरा, दिनेश बम, किशन मिश्रा, जगदीश बिष्ट, मुकुल उप्रेती, सतीश लोहनी , आदि सहित अन्य सभी पदाधिकारियों एवं सदस्यों ने संयुक्त रूप से वृक्षारोपण किया और हरेला पर्व पर अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने का संकल्प लिया।

इस अवसर पर शैल सांस्कृतिक समिति की ओर से एक पर्यावरण संदेश भी दिया गया:

“हरेला मनाएं, हरियाली बढ़ाएं – प्रकृति बचाएं, पीढ़ियां बचाएं!”

शैल परिषद ने सभी को हरेला पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं दीं और अधिकाधिक पौधे लगाने तथा उनकी देखभाल करने की अपील की।

हरेला: नई पीढ़ी के लिए चेतना का पर्व

सावन का प्रारंभ जहां शिव की साधना से होता है, वहीं हरेला पर्व प्रकृति की पूजा का संदेश लेकर आता है। यह पर्व उत्तराखंड की पारंपरिक कृषि संस्कृति और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक है। पर्वतीय क्षेत्रों में खेतों की मेड़ पर बच्चे पौधे लगाते हैं, बड़ेबुजुर्ग आशीर्वाद स्वरूप सिर पर हरेलारखते हैं। यह पर्व मात्र एक परंपरा नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों को प्रकृति से जोड़ने का माध्यम है।

विकास के साथ संस्कृति का संतुलन ज़रूरी

राज्य सरकार और नगर निकायों को चाहिए कि विकास की अंधी दौड़ में सावन, हरेला और ऐसे सांस्कृतिक पर्वों की आत्मा को कुचला जाए। मंदिरों की स्वच्छता, घाटों की व्यवस्था, कांवड़ यात्रियों की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस नीतियां बननी चाहिए। यह पर्व ग्रामीण और शहरी उत्तराखंड को एक आध्यात्मिक सूत्र में बांधता है। इसे मात्र धार्मिक कर्मकांड समझकर अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।

 

उत्तराखंड में सावन के साथ नववर्ष की यह शुरुआत एक अद्वितीय सांस्कृतिक प्रयोग है, जो हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने का आमंत्रण देता है। यह समय है शिव की भक्ति में लीन होने का, प्रकृति से जुड़ने का, और अपने अंदर की अशांति को शांत करने का। यह समय है आत्मचिंतन काकि क्या हम उस उत्तराखंड की ओर बढ़ रहे हैं जिसका सपना राज्य आंदोलनकारियों ने देखा था?

इस सावन, केवल जल चढ़ाएं, संकल्प भी लेंप्रकृति रक्षा का, संस्कृति संवर्धन का और सामाजिक समरसता का। तभी उत्तराखंड सच में देवभूमि कहलाने योग्य बना रहेगा।

शैल सांस्कृतिक समिति शैल परिषद ने पौध रोपण कर मनाया हरेला पर्व

आज जहाँ पूरे उत्तराखंड में बड़े हर्षोल्लास के साथ हरेला पर्व मनाया गया वहीं तराई के मैदानी अंचल रुद्रपुर में पर्वतीय समाज के एक मात्र विशुद्ध संस्था शैल परिषद ने भी इस त्यौहार को सुबह सुबह गोलुज्यु मंदिर में पूजा आरती के साथ साथ बड़ी मात्र में पौध रोपण कर मनाया गया जिसमें शैल के अध्यक्ष श्री गोपाल पटवाल ने हरेला पर्व के महत्व के बारे में सभी शैल के सदस्यों को  बड़ी गहराई से समझाया वही शैल के महामंत्री श्री दिवाकर पांडेय ने भी सभी को पौधे भेंट कर सभी वरिष्ठ जनों का आशीर्वाद लिया । समारोह में

 

 

 

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